समुदाय द्वारा संचालित लघु सिंचाई प्रणालियां : सतत ऊर्जा के लिये सार्वजनिक निवेश
कभी अपने श्रमिकों के ज्यादा पलायन वाला प्रदेश झारखण्ड अब किसानों को सतत ऊर्जा संसाधनों के जरिये सशक्त करने को तैयार है।
वर्ष 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक इस दशक के शुरू में झारखण्ड की 5 प्रतिशत श्रमिक आबादी रोजगार के सिलसिले में दूसरे राज्यों में पलायन कर रही थी। रोजगार के परम्परागत अवसर खत्म होने के कारण हर साल राज्य की 5 प्रतिशत आबादी दूसरे राज्यों में चली जाती थी।
अंगारा ब्लॉेक में स्थित सोसो गांव, झारखण्ड की राजधानी रांची से 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। वर्ष 2019 के शुरू में नवागढ़ में ऐसे पांच गांव शामिल हैं जिनकी कुल आबादी 5500 है।
सिंचाई, विस्थापन और आजीविका
सोसो गांव के किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिये हमेशा अनिश्चिततापूर्ण मानसून या गैर भरोसेमंद बिजली आपूर्ति पर निर्भर रहते थे। खेती से फुरसत पाने के बाद साल के बाकी महीनों में वे अपना खर्च चलाने के लिये रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में चले जाते थे। जो बाकी रह जाते थे, वे निर्माण स्थालों पर दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करने लगते थे।
भौगोलिक स्थिति के मुताबिक सोसो गांव साल के सभी महीनों में बहने वाली सुबर्णरेखा नदी के किनारे स्थित है, मगर सिंचाई के लिये इस नदी के पानी को खींचने के लिये बिजली की अच्छी व्यावस्था जरूरी है। मगर छोटी जोत वाले किसानों के लिये यह व्यवस्था करना आसान नहीं है।
बिजली : मगर शर्तें लागू
1990 के दशक में सोसो गांव में बिहार हिल एरियाज लिफ्ट इरिगेशन कॉरपोरेशन (भालको) द्वारा ग्रिड बिजली से चलने वाली सिंचाई प्रणालियां लगाये जाने के बाद यहां खेती के हालात में बदलाव आया। इससे गांव में खेती करने के तौर-तरीकों पर सकारात्मक असर पड़ा।
मगर रास्ता फिर भी बहुत मुश्किल था, क्योंकि बिजली की आपूर्ति व्यवस्था बहुत खराब थी और अक्सर रात में ही बिजली मिलती थी, जब खेतों में काम का वक्त गुजर जाता था। किसानों के लिये रात में खेत में काम करना बहुत मुश्किल होता था। यह काफी खतरनाक भी था क्यों कि रात में खेतों में छुपे सांपों के काटने का खतरा रहता था।
किसानों के सामने एक और चुनौती थी। वे रात के अंधेरे में अपने खेतों में पानी के स्तर की जांच नहीं कर पा रहे थे। इसकी वजह से अक्सर खेतों में जरूरत से ज्यादा पानी भर दिया जाता था, जिससे फसल को नुकसान होता था और खेती की उत्पादकता भी घटती थी। इन अनिश्चितताओं की वजह से किसानों का मन दूसरे फसल चक्र पर निवेश करने से हटने लगता था।
सौर ऊर्जा: एक समाधान
वर्ष 2018 के बाद इन ग्रामीणों के लिये खेती के मायने बदल गये। झारखण्ड स्टेट लाइवलीहुड्स प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) की मदद से यहां सौर ऊर्जा से चलने वाली सिंचाई प्रणाली की स्थापना की गयी। इस 5 एचपी की सौर सिंचाई प्रणाली से 16 किसानों के करीब 52 एकड़ खेतों की सिंचाई होती है।
इससे किसानों की जिंदगी बदल गयी है। अब इस गांव में गर्मियों के मौसम समेत पूरे साल खेती होती है। बिजली की भरोसेमंद व्यवस्था और बेहतर सिंचाई सुविधाओं की वजह से किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा है। वे अब और लगन से खेती कर रहे हैं और वे फसलों में विविधता भी ला रहे हैं। इससे उनकी आमदनी भी बढ़ रही है। पहले यहां के किसान सिर्फ धान की खेती करते थे, मगर अब वे खीरा, तरबूज, हरी मटर, टमाटर, हरी मिर्च और मक्का भी उगा रहे हैं। चूंकि खेतों की संयुक्त रूप से सिंचाई होती है, लिहाजा अब पानी का भी बेहतर तरीके से इस्तेैमाल हो पा रहा है।
ढलान वाली स्थलाकृति और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये समुदाय द्वारा चलायी जाने वाली ऐसी छोटे पैमाने की सिंचाई प्रणालियां, जो अक्षय ऊर्जा से चलती हैं, वे छोटी जोत वाले किसानों के लिये बहुत मददगार साबित हो सकती हैं। वे मांग के हिसाब से चलने वाली पुरानी प्रणालियों के मुकाबले बेहतर भी हैं।
भरोसेमंद बिजली और सुरक्षित आजीविका
ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (टीआरआईएफ) ने इस समाधान के लिये वित्तीय संसाधन जुटाने के उद्देश्य से झारखण्ड सरकार के सहयोग से काम किया। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ साझीदारी के लिये जल उपयोगकर्ता समूहों (डब्ल्यूयूजी) की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। इस पूरी प्रणाली के संचालन, देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी इन उपयोगककर्ता समूहों की है।
डब्ल्यूयूजी का सदस्य विजय कभी रांची में वाहन चालक का काम किया करता था। उस छोटी से कमाई में परिवार का गुजारा बहुत मुश्किल से होता था। मगर अब सिंचाई की यह सुविधा शुरू होने के बाद उसने अपनी 60 डेसिमल जमीन पर खेती को अपना पूरा समय देने का फैसला किया। आज वह साल के हर मौसम में खेती करता है। उसका परिवार अब पोषक और स्वास्थ्यवर्द्धक खाना खाता है और अतिरिक्त उत्पाादन को बेचकर अच्छी कमाई करता है।
भविष्य का ख्याल
राज्य के छह प्रखंडो में सिंचाई प्रणाली को दक्षतापूर्ण और आसान तरीके से लागू करने के लिये टीआरआईएफ ने एक राज्य सिंचाई क्रियान्वयन प्रकोष्ठ (एसआईईसी) बनाया है। दो साल के अंदर ऐसी करीब 550 प्रणालियां लगाकर उन्हें शुरू किया गया है। वर्ष 2020 के अंत तक इन छह प्रखंडों में ऐसी 700 लघु सिंचाई प्रणलियां शुरू किये जाने की सम्भावना है।