You are here

महिलाओं की नेतृत्व वाली पहल से हुआ काटी गई फसल का मूल्यवर्धन

खूंटी जिले के पेरका गांव में लीड्स रागी प्रसंस्करण इकाई ने महिलाओं को सौर ऊर्जा से चलने वाली मशीनों की मदद से अपनी आमदनी बढ़ाने में सहायता की।

फिंगर मिलेट या रागी, झारखण्ड में बिना किसी खास मेहनत के उगने वाली फसल है। इसके रख-रखाव का खर्च भी कम है। इसकी ज्यादा देखभाल नहीं करनी पड़ती। यह सूखे की स्थिति में भी खराब नहीं होती और इसमें कीड़े तथा अन्य बीमारियां भी नहीं लगतीं। हाल के वर्षों में रागी की लोकप्रियता काफी बढ़ गयी है। इसमें अच्छी मात्रा में कैल्शियम होता है। साथ ही कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स मूल्य और ग्लूटेन मुक्त होने की वजह से भी इसकी मांग बढ़ रही है। सेहत सम्बन्धी अपने गुणों को देखते हुए प्रसंस्कृत स्वुरूप और एक अनाज के तौर पर इस्तेमाल के लिये तैयार होने की वजह से भी इसकी मांग में वृद्धि हो रही है।

उत्पाद का मूल्य बढ़ाने के लिये बिजली का इस्तेमाल

मंडुआ की फसल आमतौर पर नवम्बर से जनवरी के बीच काटी जाती है। पहले किसान इसे इसके गैरप्रसंस्कृत रूप में लम्बे वक्त तक अपने पास रखते थे। ऐसा इस उम्मीेद में किया जाता था कि बाद में उसके अच्छे दाम मिलेंगे। हालांकि कई बार इससे नुकसान भी होता था और कटी फसल का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा खराब हो जाता था। बाद में यह पता चला कि अगर रागी का प्रसंस्करण यानी प्रोसेसिंग करके उसे रखा जाए तो उसे बाजार में न सिर्फ एक ताजा उत्पाद के तौर पर बेचा जा सकता है, बल्कि उसके अच्छे दाम भी वसूले जा सकते हैं।

रूरल एक्सेेज टू क्लीन एनर्जी (रेस) कार्यक्रम के तहत लीड्स ने मार्च 2019 में खूंटी जिले के पेरका गांव में स्थित अपने रिसोर्स सेंटर में 5 किलोवाट का सोलर पीवी सिस्ट्म लगाया। इस रिसोर्स सेंटर में सौर ऊर्जा का इस्तेसमाल रागी प्रोसेसिंग यूनिट को चलाने के लिये किया गया। लीड्स के रागी प्रसंस्करण केन्द्र में काम करने वाली महिलाएं इन उत्पादक समूहों से मंडुआ की कटी फसल खरीदती हैं। हर गांव में रागी की फसल बोने वाले किसानों का एक समूह बनाया गया है। फसल खरीदने के बाद रागी का आटा पीसा जाता है और उन्हें निर्धारित मात्रा वाले पैकेट्स में भरकर बाजार में बिक्री के लिये भेजा जाता है। प्रसंस्कृत उत्पाेद होने की वजह से बाजार में उनकी ज्यादा कीमत मिलती है।

महिलाओं के नेतृत्व वाली पहल

इस प्रोसेसिंग यूनिट का संचालन महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह करता है। इस इकाई को 15 महिलाओं ने शुरू किया था। इस वक्त इसमें करीब 35 महिलाएं काम कर रही हैं। ये महिलाएं सौर ऊर्जा से चलने वाली मशीनों के जरिये रागी को प्रोसेस करके पैकेट में भरती हैं। इस काम से वे हर महीने औसतन 7000 रुपये कमाती हैं।

इस कारोबार की रणनीति में महिलाएं हर कदम पर शामिल हैं। इस यूनिट में उनके पास एक उत्पादक या श्रमिक के रूप में अतिरिक्त आमदनी करने की सम्भावनाएं हैं। ये महिलाएं अब अपने घर के खर्च में भी सहयोग करने लगी हैं। वे अपने बच्चों को पढ़ा पा रही हैं, यहां तक कि वे उनको उन्नत कौशल प्रशिक्षण के लिये भी भेज रही हैं।

जब रागी के प्रसंस्करण का काम नहीं होता, तब पेरका रिसोर्स सेंटर की ये कामकाजी महिलाएं 5 किलोवाट सौर ऊर्जा प्रणाली का इस्तेमाल अन्य कार्यों, जैसे कि बार-बार प्रयोग किये जाने योग्य सैनिटरी नैपकिन और फेस मास्क बनाने में करती है। कोविड-19 महामारी के दौर में यह चीजें वक्त की जरूरत भी बन गयी हैं।

खूंटी के पेरका स्थित लीड्स रागी प्रसंस्करण इकाई के बारे में अधिक जानकारी के लिये यह वीडियो देखें : https://youtu.be/fdtepECTv4E

Stay Connected

Sign up for our newsletters

Get the latest commentary, upcoming events, publications, and multimedia resources. Sign up for the monthly WRI India Digest.