निर्बाध और भरोसेमंद बिजली मिलने से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के सेवाओं में वृद्धि हो सकती है और ऐसे केन्द्रों पर लोगों का भरोसा भी बढ़ सकता है
रांची जिले के नवागढ़ ग्राम पंचायत के अंगारा ब्लॉसक में एक आत्मृनिर्भर स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्र है, जो पूरे समुदाय की सेवा करता है।
इस स्वास्थ्य केन्द्रव में सात साफ-सुथरे कमरे हैं। यहां पंखा, बिजली, प्रतीक्षालय में टीवी, गीजर और वॉटर पम्पन की सुविधाएं भी मौजूद हैं। इस नये स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्र की स्थाीपना केन्द्रीेय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की आयुष्मान भारत योजना के तहत की गयी है।
उम्मीद की रोशनी
इस स्वािस्य्रत केन्द्रव में सामान्यर बीमारियों के इलाज के साथ-साथ इमर्जेंसी सेवा तथा प्रसव की सुविधा भी उपलब्ध है। प्रसव के लिये बनाये गये ऑपरेशन थियेटर में बेबी वार्मर, डॉपलर ,फीटल हार्टबीट मॉनिटर और स्टेजरेलाइजर जैसी सुविधाएं मौजूद हैं। इस स्वास्थ्य केन्द्र में हर महीने औसतन आठ प्रसव कराये जाते हैं। कहा जाता है कि तमाम सुविधाओं से युक्त् इस स्वास्थ्य केन्द्र की वजह से इस क्षेत्र में संस्था गत प्रसव की संख्याव में वृद्धि हुई है।
झारखण्ड् के 24 में से सिर्फ 9 जिले ही ऐसे हैं जहां मातृ मृत्युव दर एसडीजी के तहत निर्धारित लक्ष्यड से कम है। संस्थामगत प्रसव को सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र में होने वाला प्रसव भी कहते हैं। संस्थाडगत प्रसव को बढ़ावा दिया जाता है ताकि मातृ और शिशु मृत्युे दर को कम किया जा सके। यह उन प्रसव का प्रतिशत होता है जो निजी या सार्वजनिक अस्पऔतालों एवं स्वादस्य्या केन्द्रों में या फिर प्रशिक्षित स्वािस्य् ज कर्मियों या दाई की निगरानी में होते हैं। झारखण्ड के एक जिले में किये गये अध्यपयन में पाया गया कि ‘‘प्रतीक्षालय, बेड, स्वच्छता सम्बन्धी सुविधाएं, बिजली, पानी और साफ शौचालय वगैरह ऐसी मूलभूत आवश्यककताएं हैं जिनकी पूर्ति होने से महिलाओं को उस सेवा से संतोष मिलता है।’’ वैक्सीिन स्टोैरेज के लिये बिजली पर भी ऐसी ही निर्भरता होती है, जो आखिरकार टीकाकरण आच्छा’दन दर पर असर डालती है। यही वजह है कि मातृ एवं शिशु स्वा स्य्रत से जुड़े परिणामों को वरीयता देना महत्वरपूर्ण है। इससे सभी हितधारकों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए विश्वसनीय बिजली की जरूरत को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।
डीजल पर निर्भरता के वे बुरे दिन
मगर हालात हमेशा ऐसे नहीं थे। वर्ष 2018 से पहले नवागढ़ के इस केन्द्र में स्वास्थ्य सुविधाएं बस टीकाकरण और प्राथमिक उपचार तक ही सीमित थीं। यहां बिजली आने-जाने का कोई समय नहीं था। कभी-कभी तो बिजली तीन दिन तक गायब रहती थी।
उस दौरान, सिर्फ डीजल जेनरेटर का ही सहारा था, लेकिन इसे चलाकर काम करना भी किसी चुनौती से कम नहीं था। महिला कर्मचारियों के लिये डीजल जेनरेटर चलाना बहुत मुश्किल था, साथ ही इससे काफी ज्यादा वायु और ध्वनि प्रदूषण भी होता था। जेनरेटर के लिये डीजल भी बहुत दूर जाकर मिलता था। इस केन्द्रा से सबसे नजदीकी फ्यूल स्टेाशन तक पहुंचने में भी करीब डेढ़ घंटा लग जाता था।
मगर, पिछले एक साल से यहां बिजली के लिये सोलर फोटोवोल्कि (पीवी) सिस्टेम लगने से यहां बहुत सकारात्मक बदलाव आया है। अब इस केन्द्र में नल से पानी आता है। इस केन्द्र में लगी सौर ऊर्जा प्रणाली का इस्ते माल बिजली कटौती के वक्तल विकल्पन के तौर पर भी किया जा सकता है। खासकर बारिश के मौसम में जब बिजली का आवाजाही बहुत ज्यालदा होती है।
सौर समाधान
इस स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्र की छत पर 3.75 किलोवॉट उत्पादन और बैकअप क्षमता वाला सोलर सिस्टम लगा है। इससे आसपास के गांवों के लोगों को महत्वीपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं देने के मामले में बहुत राहत मिल रही है। यहां के स्टाफकर्मी अपना काम करने के लिये अच्छी् तरह से तैयार हैं। उन्हेंह स्थानीय लोगों को विभिन्न सुविधाएं देने पर गर्व का एहसास भी हो रहा है। वे स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये यहां नियमित रूप से आने वाले ग्रामीणों के लिये जाने-पहचाने चेहरे बन गये हैं। इन स्वास्थ्य कर्मियों ने इस स्वास्थ्य केन्द्रा को लेकर स्थानीय लोगों का नजरिये में सकारात्म क बदलाव महसूस किया है।
जनस्वा्स्य् ब सेवाओं की उपलब्धयता के लिये काम कर रहे लोग यह मानते हैं कि बेहतर सेवाएं देने के लिये भरोसेमंद बिजली की व्यसवस्थाल जरूरी है। राष्ट्री य स्वा स्य्ं मिशन की सिफारिश पर बनाये गये मानकों यानी इंडियन पब्लिक हेल्थव स्टैंबडर्ड्स में भी विभिन्नर स्वारस्य्तर सेवाओं को बेहतर तरीके से देने के लिये विभिन्नप स्तयरों पर बिजली की उपलब्धेता की जरूरत बतायी गयी है। इन मानकों में कुछ जगहों पर डीजल जेनरेटर के इस्तेसमाल की सिफारिश की गयी है- ‘‘सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में जेनरेटर बैक अप उपलब्ध होना चाहिये। जेनरेटर अच्छी क्षमता का होना चाहिये।’’ संसाधनों की कमी की वजह से स्वास्थ्य-सुविधा दाताओं को तेजी से काम करते हुए इन रुकावटों का इलाज ढूंढना पड़ता है। इन कदमों की सफलता के लिये स्वास्थ्य केन्द्रों में बिजली के ढांचे को मजबूत करने के लिये समन्वित और एकीकृत रवैया जरूरी होता है। यह काम स्वाधस्य्ता और ऊर्जा विभागों के बीच योजना तथा बजटिंग के स्तटर पर बढ़े हुए सहयोग तथा बिजली की उपयोगिता के जरिये होता है।