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कोविड-19 महामारी के दौरान दूरस्थ और डिजिटल शिक्षा के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता

कोविड-19 महामारी ने हमें इस वैश्विक आपदा से पहले अपनाये जाने वाले अपने कामकाज के तरीकों पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर किया है। महामारी की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शिक्षा भी शामिल है, क्योंकि स्कूलों और विश्वविद्यालयों के तमाम शहरी और ग्रामीण छात्रों को शिक्षा हासिल करने के नए तौर-तरीकों से तालमेल बैठाने की जरूरत पड़ी। इसकी वजह से शिक्षा के लिए स्कूलों के अलावा पठन-पाठन के अन्य स्थानों पर भी बिजली की जरूरत की तरफ सभी का ध्यान गया है।

कोविड-19 महामारी के मद्देनजर भारत में घोषित राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से स्कूल की कक्षाओं में सन्नाटा पसरा है। दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित सरकारी और पब्लिक स्कूलों में बजने वाला घंटी इस महामारी के कारण 6 महीने से ज्यादा समय से खामोश है। इस खामोशी की गूंज रांची जिले के नवागढ़ पंचायत स्थित पाहन टोला में बहुत ज्यादा सुनाई दे रही है।

लॉकडाउन के दौरान पढ़ाई जारी रखने के लिए शिक्षक अब कक्षा के बजाय कंप्यूटर के माध्यम से पढ़ाने लगे हैं और छात्र रोजाना होने वाली वर्चुअल क्लास पर निर्भर हो चुके हैं। यह सिलसिला सोमवार से शनिवार के दिनों में 2 से 4 घंटे तक जारी रहता है। यह कक्षाएं स्कूलों के साथ-साथ निजी कोचिंग भी आयोजित करा रही हैं जो इसके लिए हर महीने 500 तक रुपये वसूल करती हैं। पाहन टोला जैसे इलाकों में बिजली की आपूर्ति व्यवस्था अच्छी नहीं है। ऐसे में यहां डिजिटल माध्यम से शिक्षा देना बहुत मुश्किल काम है।

जाहिर है कि बिजली की खराब व्यवस्था, वर्चुअल कक्षाओं में प्रवेश के लिए फीस, इंटरनेट डाटा की कीमत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को चार्ज करने के लिए बिजली के बढ़े हुए दामों की वजह से वर्चुअल कक्षाओं में छात्रों की उपस्थिति और छात्र तथा शिक्षक के बीच तालमेल पर बुरा असर पड़ा है। बारिश के समय हालात और खराब हो जाते हैं, जब आसमान में बादल छाते हैं। बारिश के कारण अक्सर बिजली आपूर्ति व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप बिजली की उपलब्धता की स्थिति और भी ज्यादा खराब हो जाती है।

उम्मीद की रोशनी

छात्रों को न सिर्फ वर्चुअल लर्निंग के हिसाब से खुद को ढालना पड़ा, बल्कि बिजली की खराब व्यवस्था से भी निपटना पड़ा। कई छात्रों ने अपनी पढ़ाई को बेहतर तरीके से जारी रखने के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के बारे में सोचा और उन्हें साझा किया। सोलर लैंप का निर्माण एक ऐसा ही उदाहरण है।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को चार्ज करने के साथ-साथ लाइट जलाने जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए भी बिजली का होना जरूरी है। बिजली पर होने वाले खर्च में कमी लाने के लिए कुछ छात्रों ने नए तरीके के उपकरणों, जैसे कि सोलर लैंप के बारे में सोचा और उन्हें बनाया ताकि उन्हें अपनी पढ़ाई में मदद मिल सके। पाहन टोला के रहने वाले कक्षा 10 के प्रगतिशील छात्र राकेश ने बेकार पड़े सौर उपकरणों और मोबाइल फोन की बैटरी का इस्तेमाल करके अपने कमरे में रोशनी करने के लिए एक सोलर पीवी लैंप बनाया। राकेश ने यूट्यूब वीडियो देखकर इसे बनाना सीखा।

बिजली आपूर्ति व्यवस्था अच्छी ना होने की वजह से लोगों को वैकल्पिक स्रोतों जैसे कि इनवर्टर और सौर ऊर्जा प्रणालियों को अपनाना पड़ा। गांव में अक्सर कई-कई दिनों तक बिजली गायब हो जाती है। ऐसे में इन वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल कई परिवार मिलकर करते हैं। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों ने राकेश जैसे छात्रों के लिए अपने खाली वक्त में यूट्यूब पर वीडियो देख कर अपनी पढ़ाई को और बेहतर करने का मौका दिया है।

बिजली से जुड़े समाधान निकालें और रहें अव्वल

मुकेश बीकॉम का छात्र है। उसे कंप्यूटर और उसकी लैंग्वेजेज जैसे कि C++ वगैरह के बारे में सीखने का शौक है। मोबाइल फोन अब एक जरूरत बन गया है। मुकेश इस बात का ख्याल करता है कि उसके मोबाइल फोन की बैटरी हमेशा चार्ज रहे, भले ही उसे इसके लिए ब्लॉक मुख्यालय तक क्यों ना जाना पड़े। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत जैसे कि सौर ऊर्जा इस वक्त बिजली हासिल करने के लिये पसंदीदा चीज बन गए हैं। खासतौर पर ग्रामीण भारत में शिक्षा जैसी जन सेवाएं उपलब्ध कराने की जरूरत को देखते हुए इन वैकल्पिक स्रोतों का चलन बढ़ा है। नवागढ़ में रहने वाले परिवार भी रोशनी के लिए सोलर लैंप के साथ-साथ पेयजल संबंधी जरूरतों के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप और अपने खेतों की सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई प्रणालियों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

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