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आपात स्थितियों से निपटने के के लिये स्वास्थ्य केन्द्रों में निर्बाध बिजली आपूर्ति बेहद जरूरी

कोविड-19 महामारी ने भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं को चर्चा में ला दिया है। ऐसी आपात स्थितियों से प्रभावशाली और समयबद्ध तरीके से निपटने के लिये स्थानीय प्रशासन के पास जरूरी संसाधन होना बहुत जरूरी है।

कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद मई 2020 तक भारत में करीब 23 लाख लोग क्वा्रंटीन हुए थे। यह संख्या लगातार बढ़ रही है।

आपात स्थितियों से निपटने और उनके हिसाब से ढलने के लिये भवनों के उपयोग में परिवर्तन

मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन घोषित होने के फौरन बाद लाखों की संख्या में प्रवासी श्रमिक और कामगारों ने अपने घर लौटना शुरू कर दिया। सरकार ने घर लौटने वाले हर श्रमिक और कामगार के लिए खुद को 14 दिन तक क्वारंटीन में रखना जरूरी कर दिया। झारखंड के विभिन्न जिलों में लॉकडाउन के कारण बंद हुए स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों, महाविद्यालयों और पॉलीटेक्निक केंद्रों को क्वॉरेंटीन सेंटर बनाया गया और वहां प्रवासी श्रमिकों और कामगारों को रखने और उनका टेस्ट करने की सुविधा उपलब्ध कराई गई। सुदूर ग्रामीण इलाकों में कोविड-19 संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए यह कदम उठाया गया।

लचीलापन तंत्र निर्माण के लिए बिजली की भरोसेमंद व्यवस्था बहुत जरूरी

क्वारंटीन केंद्रों को बेहतर तरीके से संचालित करने के लिए वहां लगातार बिजली की आपूर्ति तथा अन्य संसाधनों की उपलब्धता जरूरी होती है। पेयजल, लाइट, पंखे और मोबाइल फोन चार्ज करने जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए बिजली का होना जरूरी है। बिजली आपूर्ति की व्यवस्था अच्छी ना होने पर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बैकअप के तौर पर वाटर टैंकरों का प्रबंध करना पड़ता है।

समय कम होने की स्थिति में बिजली के लिए डीजल जनरेटर का ही विकल्प बाकी रह जाता है। यहां तक कि इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड्स (आईपीएचएस) के दिशानिर्देशों में भी डीजल जनरेटर का इस्तेमाल करने को कहा गया है। इन दिशा निर्देशों के अनुसार "सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर जनरेटर बैकअप उपलब्ध होना चाहिए। जनरेटर की क्षमता भी अच्छी होनी चाहिए।" जन स्वास्थ्य केंद्रों में विस्तृत श्रृंखला की सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए इसकी जरूरत होती है। निर्देशों में यह भी कहा गया है कि जहां संभव हो वहां सौर प्रणाली भी लगाई जाए। समय और संसाधनों से जुड़ी बाधाओं की वजह से डीजल जनरेटर सेट जल्द मिलने वाले समाधान की तरह होते हैं।

हालांकि जैसा इस मामले में देखा गया है कि एक भरोसेमंद, किफायती और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत में निवेश करने की जरूरत है ताकि स्थानीय प्रशासन को आपदा और आपात स्थितियों से समयबद्ध, किफायती और प्रभावी तरीके से निपटने में मदद मिल सके। कोविड-19 महामारी भी एक ऐसी ही स्थिति है। चूंकि यह स्कूल, आंगनवाड़ी केंद्र, कॉलेज और पॉलिटेक्निक केंद्र इत्यादि ऐसे भवन हैं, जिन्हें कोविड-19 जैसी आपात स्थिति में सबसे पहले क्वॉरेंटीन सेंटर बनाया गया, लिहाजा इन केंद्रों को स्वच्छ और भरोसेमंद ऊर्जा विकल्प उपलब्ध कराना जरूरी है।

भरोसेमंद बिजली की व्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण है। इससे आपदाओं और आपात स्थितियों से निपटने की स्वास्थ्य केंद्र की क्षमता में भी वृद्धि होती है। हमें स्वास्थ्य सेवाओं की बिजली संबंधी जरूरतों को और बारीकी से समझने और उनका मूल्यांकन करने की जरूरत है। न सिर्फ स्वास्थ्य केंद्र की प्रत्यक्ष सेवाओं के मामले में बल्कि आपात और आपदा की स्थिति में राहत दिलाने के लिए जरूरी ढांचे के तौर पर काम करने के लिहाज से इसकी क्षमता और संभावनाओं के लिहाज से भी मूल्यांकन करना होगा।

*मई, 2020: https://www.thehindu.com/news/national/coronavirus-nearly-23-lakh-people-in-quarantine-across-india/article31695125.ece

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