You are here

भारत की स्वास्थ्य सेवाओं एवं शिक्षा में ऊर्जा संबंधी प्राथमिकताओं का एकीकरण : राष्ट्रीय तथा उप राष्ट्रीय नीतियों की एक समीक्षा

26 November 2021: पिछले एक दशक के दौरान जहां भारत ने पूरे देश के लगभग सभी घरों के विद्युतीकरण की दिशा में प्रभावशाली प्रगति की है, वहीं देश के करीब एक तिहाई स्कूल (37%) और लगभग एक चौथाई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (24%) वर्ष 2020 तक बिजली की किल्लत से जूझ रहे थे। यह रूपांतरणकारी बदलाव लाने के मार्ग में एक बाधा है।

स्वास्थ्य सेवाओं तथा शिक्षा की उपलब्धता को बेहतर बनाने के लिए अंतरविभागीय समन्वय आवश्यक है और ऐसी एकीकरण संबंधी गतिविधियों के लिए सरकारी नीतियां महत्वपूर्ण माध्यम का काम करती हैं। यही वजह है कि हमें यह समझना ही होगा कि राष्ट्रीय तथा उप राष्ट्रीय नीतियों में शिक्षा तथा स्वास्थ्य संबंधी विकासात्मक परिणाम प्राप्त करने में बिजली की उपलब्धता की क्या भूमिका है।

ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं को सफलतापूर्वक शामिल करने के लिए नीतियों में नवोन्मेषी संयोजन और वित्तीय तंत्रों को शामिल करना जरूरी है। स्पष्ट अनुपालन संबंधी दिशानिर्देश तैयार करते वक्त इन तंत्रों को भी पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए ताकि स्थानीय संदर्भों में प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त लचीलापन की गुंजाइश बनी रहे।

डब्ल्यूआरआई इंडिया के सीईओ सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डॉक्टर ओपी अग्रवाल ने कहा "ऐसी एकीकृत नीतियों तथा पद्धतियों को हासिल करने के लिए डब्ल्यूआरआई इंडिया ने स्वास्थ्य तथा शिक्षा से संबंधित 100 से अधिक नीति दस्तावेजों तथा असम, झारखंड और राजस्थान में ऊर्जा से जुड़े उनके सम्‍बन्‍धों का विश्लेषण कराया है। यह रिपोर्ट इन राज्यों में स्वास्थ्य तथा शिक्षा संबंधी नीतियों में बिजली को प्राथमिकता देने के मार्ग में व्याप्त कमियों को समझने तथा इनकी वजह से विकासात्मक नतीजों पर बिजली की उपलब्धता के प्रभाव को मूल्यांकन करने में इनके कारण उत्पन्न मुश्किलों के आकलन का एक संगम है।

हमारे कुछ सुझाव इस प्रकार हैं-

  • नीतियों में बिजली को स्थानीय सूचना के आधार पर विकास संबंधी नतीजों से जोड़ना होगा और कोषों में लचीलापन लाना होगा ताकि स्थानीय नीति निर्धारक नीति के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं को खत्म करने के लिए निर्णय ले सके।
  • स्वास्थ्य केंद्रों तथा स्कूलों के लिए बिजली की भरोसेमंद व्यवस्था को राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर विकेंद्रित निर्णय निर्धारक लोगों की जिम्मेदारी बनाया जाना चाहिए। व्यक्तिगत सुविधाओं पर नीतियों या कार्यक्रमों की कसौटी पर खरे उतरने का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए।
  • प्रभावशाली नीति कार्ययोजनाओं में मजबूत जवाबदेही और प्रवर्तन संबंधी तंत्रों को शामिल किया जाना चाहिए। जैसे कि नीति निगरानी तंत्र आदि। इस वक्त हो रही समीक्षा केवल भौतिक प्रगति तथा वित्तीय खर्च संबंधी संकेतकों पर ही केंद्रित है। यह समग्र विकास और कल्याण पर संपत्ति के निर्माण के प्रभाव का मूल्यांकन नहीं करता। विकास तथा एकीकरण संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन में यह प्रमाण उल्लेखनीय है।
  • एकीकरण करने वाली नीतियां उपयोगी तो हैं लेकिन वे अपेक्षित नतीजे हासिल करने के लिहाज से पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे में वे उपकरण जो नीतियों को क्रियान्वित कर सकें जैसे कि संस्थागत ढांचे, वित्त, सूचना तथा समन्वय तंत्र को भी नीतियों में शामिल किया जाना चाहिए ताकि उन्हें रूपांतरणकारी बनाया जा सके।

नीति आयोग के आकांक्षात्मक जिला कार्यक्रम मिशन निदेशक श्री राकेश रंजन ने कहा ‘‘यह विश्‍लेषण प्रकाशित करने के लिये डब्‍ल्‍यूआरआई इंडिया को धन्‍यवाद। यह हमें एक बार फिर याद दिलाता है कि सामाजिक क्षेत्र में कोई योजना शुरू करने से पहले क्षेत्रीय स्‍तर पर बिजली की उपलब्‍धता की ताजा स्थिति का पता लगाया जाना चाहिये और जरूरत पड़ने पर हल‍ निकालने के कदम उठाने चाहिये। डब्‍ल्‍यूआरआई का यह कार्य नीति निर्माण के साथ-साथ सरकार के विभिन्‍न स्‍तरों पर योजनाओं के क्रियान्‍वयन करने वाली एजेंसियों के लिये बहुत उपयोगी साबित होगा।’’

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :

कुणाल शंकर 

सीनियर कम्युनिकेशन मैनेजर, डब्ल्यूआरआई-इंडिया एनर्जी प्रोग्राम

Kunal.Shankar@wri.org (मो.) +91-98661-73803

Stay Connected

Sign up for our newsletters

Get the latest commentary, upcoming events, publications, and multimedia resources. Sign up for the monthly WRI India Digest.