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सौर ऊर्जा से महिलाओं की आजीविका को मिली शक्ति

झारखंड के खूंटी जिले के पेरका गांव में झारखंड अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (जेआरईडीए), यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) और आईसीसीओ की मदद से लीड्स रिसोर्स सेंटर की स्थापना की गई है। रूफटॉप सोलर सिस्टम से युक्त इस केंद्र के जरिए गांव की महिलाओं को इस मुश्किल वक्त में रोजी रोटी मिल रही है।

वर्ष 2019 के मध्य तक भारत में मासिक धर्म से गुजरने वाली सिर्फ 36% महिलाएं और लड़कियां ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल कर रही थी।1 किशोरावस्था तक पहुंचने पर लड़कियों के स्कूल छोड़ने का सिलसिला भी ज्यादा था। स्कूलों में मासिक धर्म संबंधी जरूरतों को सुरक्षित तरीके से पूरा करने के लिए शौचालय और पानी की व्यवस्था जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव भी बच्चियों के स्कू ल छोड़ने के प्रमुख कारणों में शामिल किया जाता है।2 देश में बच्चों के स्कूल छोड़ने की सबसे ज्यादा दर झारखंड में है। प्रदेश में 10 में से केवल 3 छात्र ही स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी कर पाते हैं।3

झारखंड की एक बहुत बड़ी आबादी, आदिवासी समुदाय को बिजली और पानी की किल्लत का सामना करना पड़ता है। शौचालयों में पानी और पेयजल के लिए पंप चलाने पर होने वाला बिजली का खर्च उठाना भी इन समुदायों के लिए मुश्किल है। यह खर्च भी इस बात को तय करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान साफ सफाई के समाधान उपलब्ध हो पाते हैं या नहीं। यही वजह है कि मासिक धर्म और स्कूल छोड़ने की घटनाओं के बीच गहरा संबंध है।

कोविड-19 की बात करें तो इसने भारत में न सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं के मूलभूत ढांचे पर काफी भार डाला है बल्कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की रोजी-रोटी पर भी बुरा असर पड़ा है। इस महामारी क बीच स्वयं सहायता समूह के नेतृत्व में मिलने वाली आजीविका सुरक्षा और मासिक धर्म के दौरान साफ-सफाई जैसे मुद्दे बहुत पीछे छूट गए हैं।

मगर झारखंड के खूंटी जिले के पेरका गांव में स्थित लीड्स रिसोर्ट सेंटर ने महिलाओं के सामने खड़ी इन दोनों ही चुनौतियों को एक साथ जोड़ने के साथ-साथ उन्हें मासिक धर्म संबंधी साफ-सफाई रखने और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन तथा उसके बाद भी अपनी रोजी-रोटी चलाने का जरिया उपलब्ध कराया है।

हर व्यक्ति एक मार्गदर्शक

गांव में एक मासिक चक्र तक चलने वाले डिस्पोजेबल सेनेटरी नैपकिन के एक पैकेट की औसत कीमत 30 रुपये है। साल भर में यह खर्च 360 रुपये होता है। पेरका गांव के ज्यादातर परिवार यह खर्च नहीं उठा सकते।

हालांकि जांचे परखे गए 4 रीयूजेबल सैनिटरी नैपकिन की कीमत सिर्फ 100 रुपये है। कोई महिला या किशोरी इस सेनेटरी नैपकिन को बार-बार धोकर एक साल तक इस्तेमाल कर सकती है। गांव की महिलाओं ने खुद इसका डिजाइन तैयार किया है। इससे सेनेटरी नैपकिन पर होने वाले खर्च में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है, क्योंकि इन नैपकिंस को बार-बार धोकर इस्तेमाल किया जा सकता है।

सूरज की रोशनी से मिली नई उम्मीद

झारखंड के खूंटी जिले के पेरका गांव में मार्च 2019 में लीड्स रिसोर्स सेंटर की छत पर 5 किलोवाट का सोलर पीवी सिस्टम लगाया गया था। बार बार इस्तेमाल किए जाने योग्य सेनेटरी पैड और फेस मास्क के निर्माण के लिए स्थापित इस रिसोर्ट सेंटर का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना था। यह महिलाएं इस रिसोर्स सेंटर में लगी सौर ऊर्जा से चलने वाली मशीनों को चलाने और उन पर सिलाई करने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं।

रिसोर्स सेंटर की छत पर लगे सोलर सिस्टम से 10 सिलाई मशीनें चलाई जा सकती हैं। इन मशीनों पर बारी-बारी से काम करने के लिए 30 लड़कियों और महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है वे यहां रीयूजेबल सैनिटरी नैपकिन, फेस मास्क तथा अन्य कपड़े सिलकर हर महीने औसतन 8000 रुपये कमाती हैं। अगस्त 2020 तक इस रिसोर्ट सेंटर में काम करने वाली महिलाओं और लड़कियों ने 25000 मास्क तैयार किए।

कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के बुरे वक्त में भी महिलाओं को रोजीरोटी का यह अतिरिक्त और वैकल्पिक अवसर प्राप्त हुआ। इससे होने वाली आमदनी से अब वे अपने घर के खर्च में भी योगदान करने लगी हैं।

इससे भी आगे बढ़कर वे अब बदलाव की वाहक भी बन गई हैं। वे क्षेत्र में घूम-घूम कर अन्य महिलाओं को माहवारी संबंधी साफ-सफाई के महत्व के साथ-साथ हस्तनिर्मित किफायती सैनिटरी पैड के बारे में भी बता रही हैं। साथ ही वे लोगों को कोविड-19 वायरस के फैलने का खतरा कम करने के लिए मास्क पहनने के प्रति भी जागरूक कर रही हैं।

इस प्रयास का क्या असर पड़ा, इसे देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=OmXU7v0hNX8&feature=youtu.be

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