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कोविड-19 महामारी के दौरान सोलर पीवी झारखंड के सुदूर इलाकों में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य केंद्र को बिजली दे रहा है

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत की चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था पर काम का भार काफी बढ़ गया है। इसी बीच, झारखंड की राजधानी रांची से 120 किलोमीटर दूर पलामू में नवजीवन अस्पताल ने दूरगामी परिणाम देने वाली दूरदर्शिता की एक मिसाल कायम की है।

झारखंड के दूरदराज के क्षेत्रों में मजबूत चिकित्सा सुविधाएं बहुत कम हैं और उनके बीच की दूरी भी काफी ज्यादा है। दूरदराज के ऐसे क्षेत्रों में बसे लोगों को चिकित्सा सुविधा देने के लिए पलामू जिले में वर्ष 1961 में नवजीवन अस्पताल की स्थापना की गई थी।

शुरुआती वर्षों में रही स्थितियां

नवजीवन अस्पताल इस क्षेत्र का एकमात्र ऐसा अस्पताल है, जहां एक्यूट केयर यूनिट और ट्यूबरकुलोसिस जैसी बीमारियों के इलाज की सुविधा है। इस अस्पताल में कई वर्षों तक फ्लैशलाइट और पेट्रोमैक्स लैंप की रोशनी में सर्जरी और प्रसव कराए गए। हालांकि ग्रिड से बिजली कनेक्शन मिलने के बाद हालात में कुछ सुधार हुआ लेकिन बार-बार होने वाली बिजली कटौती और वोल्टेज में उतार-चढ़ाव की वजह से अस्पताल के कामकाज पर बुरा असर पड़ना जारी रहा। इसके अलावा हर साल मॉनसून के दौरान बिजली ग्रिड को होने वाली क्षति की वजह से लंबे वक्त तक बिजली कटौती होने के कारण नवजीवन अस्पताल को महंगे और प्रदूषणकारी डीजल जनरेटरों का मजबूरन सहारा लेना पड़ा था।

ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बिजली

वर्ष 2019 के अंत तक 100 बेड वाले इस नवजीवन अस्पताल को बिजली की खराब व्यवस्था और वोल्टेज में लगातार उतार-चढ़ाव के कारण अपने कामकाज में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।

अस्पताल के सामने आ रही बिजली की समस्या को दूर करने के लिए नवजीवन अस्पताल के एक डॉक्टर ने अपने पैसे से जनवरी 2020 में 10 किलोवाट पीक सोलर फोटोवॉल्टिक सिस्टम लगवाया। उस वक्त अस्पताल प्रशासन को यह अहसास नहीं था कि कोविड-19 महामारी बमुश्किल एक महीने बाद ही आने वाली है। मगर दूरदराज के क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद नवजीवन अस्पताल कोविड-19 के संकट से निपटने के लिए तैयार था।

सौर ऊर्जा ने कैसे कोविड-19 संकट से प्रभावशाली तरीके से निपटने में नवजीवन अस्पताल की मदद की

इस 10 किलो वाट के सोलर पीवी सिस्टम के कारण अस्पताल की कुछ बेहद महत्वपूर्ण जरूरतें पूरी हुई। इसे कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए जरूरी उपकरण चलाने में बिजली के प्रमुख स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

सौर ऊर्जा से आईसीयू वेंटीलेटर चलाए जाते हैं। इसके अलावा आपात स्थिति में इस बिजली से सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए अतिरिक्त वेंटिलेटर भी चलाए जा सकते हैं।

अप्रैल के शुरू में झारखंड की सरकार ने कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए नवजीवन अस्पताल को प्रमुख स्वास्थ्य केंद्र के रूप में चयनित किया था। इस अस्पताल में क्षेत्र के 450 गांवों के मरीजों का इलाज होना था। राज्य सरकार के मार्गदर्शन में इस अस्पताल ने कोविड-19 के संदिग्ध और पुष्ट मरीजों के इलाज के लिए डेडीकेटेड बेड का प्रबंध किया। संक्रमित घोषित किए गए मरीजों के इलाज की सुविधाओं में वृद्धि की और गंभीर मरीजों के उपचार के लिए इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में चार बेड आरक्षित किए।

आगे का रास्ता

भारत के ग्रामीण और और सुदूर इलाकों में बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के लिहाज से सौर ऊर्जा को एक मॉडल के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे अस्पतालों में बिजली के वैकल्पिक स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे बिजली के खर्च में कटौती हो सकती है और डीजल जेनरेटर चलने से होने वाले प्रदूषण से भी बचा जा सकता है। सौर ऊर्जा अपनाने से वित्तीय दक्षता में बढ़ोत्तरी होने के साथ-साथ निर्बाध सेवा की सुविधा भी उपलब्ध होती है।

नवजीवन अस्पताल ने खासकर ग्रामीण इलाकों में स्थित चिकित्सालय में सौर ऊर्जा के प्रयोग की एक मिसाल कायम की है। इसने यह साबित किया है कि बिजली की भरोसेमंद आपूर्ति व्यवस्था उपलब्ध होने से ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में चिकित्सा की मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ क्रिटिकल केयर सेवाएं भी बेहतर की जा सकती हैं। हालांकि यह तरक्की और सुविधाओं में वृद्धि रातों-रात नहीं होती। इसके लिए वर्षों तक सोच समझकर बनाई गई योजना और दूरदर्शिता की जरूरत होती है।

हाल के वर्षों में चिकित्सा सुविधाओं में सुधार के लिए उठाए गए बेहतर कदम और हाल ही में विकेंद्रित सौर ऊर्जा के जरिए बिजली की आपूर्ति व्यवस्था बनाए जाने से नवजीवन अस्पताल की आत्मनिर्भरता और आपदा प्रबंधन की क्षमताओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

यह लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी है कि एकीकृत नीतियों, सतत प्रौद्योगिकी समाधानों और नए वित्तीय मॉडल्स के जरिए भरोसेमंद स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिये राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर संवाद स्थापित किया जाए।

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